हिमाचल में आखिर क्यों ट्रेंड नहीं बदल पाई BJP?

शिमला: हिमाचल प्रदेश में पिछले लम्बे समय से ये ट्रेंड चला आ रहा है कि यहां हर 5 साल में सरकार बदल जाती है. हालाँकि इस बार भाजपा बड़े जोरों-शोरों से इस ट्रेंड को बदलने का दावा करते नजर आई, लेकिन पार्टी के दावे सिर्फ दावों में ही सिमट कर रह गए. और इन सबके बीच जनता जनार्दन ने ये साबित कर दिया कि “होगा तो वही जो हम चाहेंगे”. अब देखना ये होगा कि इस बार के भी चुनाव परिणाम से भाजपा-कांग्रेस दोनों ही प्रमुख पार्टियां क्या सबक लेती हैं? आपके ध्यनाकर्षण के लिए बता दें कि इस बार हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस ने आखिरकार भाजपा के हाथों से सत्ता छिन ली। चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटों पर हासिल की। जो बहुमत के आंकड़े 35 से ज्यादा है। तीन सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी आगे हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर कैसे भाजपा के हाथों से हिमाचल प्रदेश निकल गया? इसके क्या मायने हैं? क्या अब भी भाजपा सरकार पास सरकार बनाने का कोई विकल्प बचा है? तो चलिए राजनीति के इस गणित को फॉर्मूले में समझते हैं…
पहले तो जानिए भाजपा की हार के पांच बड़े कारण
एक मीडिया से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह ने हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार के बड़े कारणों को बताया। साथ में ये भी बताया कि क्या चुनाव हारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी सरकार बना सकती है? तो जानते हैं उनकी राय…
1. बगावत ने छीन ली सत्ता: हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद सबसे ज्यादा बगावत भारतीय जनता पार्टी में दिखी। भाजपा के 21बागियों ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कुछ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी चले गए। इसके चलते भाजपा के वोटों में बड़ी सेंधमारी हुई। इसका फायदा कांग्रेस को हुआ।
2. स्थानीय नेताओं से नाराजगी: स्थानीय नेताओं और मंत्रियों को लेकर लोगों के बीच काफी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में लोगों का कहना था कि नेता उनकी बातें नहीं सुनते हैं। क्षेत्र में भी नहीं रहते। इसके बावजूद पार्टी ने टिकट दिया। कुछ प्रत्याशियों पर परिवारवाद का भी आरोप लगा। जैसे- मनाली के प्रत्याशी और शिक्षामंत्री गोविंद ठाकुर हैं। गोविंद के पिता भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं। ऐसे में स्थानीय लोग उनसे काफी नाराज रहे।
3. महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा भी रहा अहम : कोरोना के बाद पूरे देश की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया। हिमाचल प्रदेश के आय का स्त्रोत पर्यटन है। कोरोनाकाल में ये पूरी तरह ठप पड़ गया था। इसके बावजूद यहां के लोगों को कुछ राहत नहीं मिली। इस बीच, महंगाई और बेरोजगारी भी काफी बढ़ गई। इसके चलते भी लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी दिखी।
4. कांग्रेस के लुभावने वादे: इस बार चुनाव में कांग्रेस ने कई लुभावने चुनावी वादे किए। पुरानी पेंशन योजना से लेकर 300 यूनिट मुफ्त बिजली, स्कूलों की बेहतर स्थिति और पर्यटन को बढ़ावा देने जैसी कई लुभावने वादे हुए। इसका असर भी मतदान में देखने को मिला।
5. भाजपा के पास नेतृत्व की कमी: भारतीय जनता पार्टी के पास हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व की कमी दिखी। 2020 में हुए उपचुनाव के दौरान भी ये साफ हो गया था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाए। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के खिलाफ भी लोगों की नाराजगी दिखी।
क्या हार के बाद भी सरकार बना सकती है भाजपा?
गोवा, असम, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी,कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में ऐसा हो चुका है। जहां, चुनाव हारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश को लेकर भी इस तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। अभी हिमाचल प्रदेश में भाजपा के 25 सीट जीतती दिख रही है। यहां बहुमत का आंकड़ा 35 है। ऐसे में सरकार बनाने के लिए भाजपा को 10 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। तीन निर्दलीय भी अगर भाजपा के समर्थन में आ जाएं तो भी भाजपा बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएगी। हालांकि, अगर कांग्रेस के विधायक टूटकर भाजपा में शामिल होते हैं, तो जरूर आगे चलकर बड़ा उलटफेर हो सकता है। ऐसे में भाजपा की सरकार बन सकती है। हालांकि, फिलहाल ये संभव नहीं दिख रहा है। और आगे क्या होता है ये देखना काफी दिलचस्प होगा।