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दुर्ग के तत्कालीन सहायक खनिज अधिकारी गणेश प्रसाद कुम्हारे को सात साल सश्रम कारावास की सजा एवं 20 हजार का अर्थदंड से दंडित किया…न्यायालय ने

दुर्ग। आय से अधिक संपत्ति के मामले में न्यायालय ने दुर्ग के तत्कालीन सहायक खनिज अधिकारी गणेश प्रसाद कुम्हारे को सात साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। आरोपित को 20 हजार रुपये अर्थदंड से भी दंडित किया गया है।

न्यायालय ने 20 हजार रुपये अर्थदंड से भी किया दंडित प्रकरण के मुताबिक आरोपित गणेश प्रसाद कुम्हारे तत्कालीन सहायक खनिज अधिकारी दुर्ग द्वारा अपने तथा अपने परिवार वालों के नाम पर अत्यधिक मात्रा में चल-अचल संपत्ति अर्जित किए जाने की गोपनीय सूचना एसीबी रायपुर को मिली थी। सूचना पर प्रकरण दर्ज कर 11 अक्टूबर 2020 को एसीबी ने विशेष न्यायालय रायपुर से तलाशी वारंट प्राप्त किया। इसके बाद एसीबी की टीम ने आरोपित के विजय नगर स्थित नवनिर्मित मकान की तलाशी ली।

इस दौरान नकद रकम, बैंक संबंधित दस्तावेज, बीमा पालिसी, अचल संपत्ति संबंधी दस्तावेजों को जब्त किया गया। विवेचना के दौरान एक जनवरी 2004 से 12 अक्टूबर 2010 तक की अवधि का आय-व्यय का ब्यौरा तैयार किया गया। ब्यौरा के मुताबिक आरोपित द्वारा कुल दो करोड़ 20 लाख 51 हजार 378 रुपये के अनुपातहीन संपत्ति अर्जित किया जाना पाया गया। जो उसकी औसत सकल आय की तुलना में 408 प्रतिशत अधिक है।

विवेचना उपरांत आरोपित गणेश प्रसाद कुम्हारे सहायक खनिज अधिकारी दुर्ग के विरुद्ध धारा 13(1)(ई) एवं 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का अपराध प्रमाणित होने पर प्रकरण विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम दुर्ग आदित्य जोशी के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

विचारण उपरांत न्यायालय ने आरोपित गणेश प्रसाद कुम्हारे को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अपराध के लिए सात वर्ष के सश्रम कारावास एवं 20 हजार रुपये अर्थदंड से दंडित किया। अर्थदंड की राशि अदा नहीं करने पर आरोपित को छह माह अतिरिक्त सश्रम कारावास की सजा भुगतनी होगी। न्यायालय में सुनवाई के दौरान शासन की ओर से प्रकरण की पैरवी विशेष लोक अभियोजक जाहिदा परवीन ने की।

न्यायालय ने निर्णय में यह कहा :-

न्यायालय ने अपने फैसले में इस आशय का उल्लेख किया है कि वर्तमान समय में लोक सेवकों द्वारा अनुपातहीन संपत्ति अर्जित कर अवचार कारित किए जाने का अपराध विशालकाय रूप को लेकर लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को विफल कर रहा है। जिसे विचार में लेते हुए आरोपित को न्यूनतम दंड से दंडित करना न्यायोचित नहीं होगा अपितु कठोर दंड का हकदार है। ताकि समाज में संतुलन बना रहे और अन्य लोक सेवकों द्वारा अपना पदीय कर्तव्य ईमानदारी से निभाया जाए।

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