छत्तीसगढ़रायपुर

Press club : बदलाव की बयार में उड़े पुराने दिग्गज

विश्लेषण: प्रेस क्लब चुनाव-दिल्ली पैटर्न पर आया जनादेश

◆ प्रेस क्लब-चल गया,चल गया, चलो कुछ नया करते हैं…

◆ इस बार दिग्गगों को पटकनी देने प्रफुल्ल को नहीं करना पड़ी मशक्कत…

◆ नए को मौका देने की ख्वाईश में पुराने पदाधिकारियों रणनीति फेल हो गई…

रायपुर। राजधानी रायपुर प्रेस क्लब के चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हो गए हैं, अध्यक्ष के रूप में कई दिग्गजों को पटकनी देकर प्रफुल्ल ठाकुर ने जीत हासिल की है । महासचिव के रूप में वैभव पांडे, कोषाध्यक्ष रमन हवाई और संयुक्त सचिव के रूप में तृप्ति सोनी के साथ बमलेश्वर सोनवानी ने जीत हासिल की है, चुनाव परिणाम से साफ है कि प्रेस क्लब ने इस बार नए पदाधिकारी पर भरोसा जताया है। इस बार का प्रेस क्लब चुनाव पिछले कार्यकाल के साये में हुआ, इसलिए पिछले कार्यकाल की लेट लतीफ लचर व्यवस्था और तानाशाहीपूर्ण रवैया जैसी स्थिति की छाप वोटरों के मन मस्तिष्क में रही, यही वजह है कि परिणाम भी बदलबो बदलबो के फैक्टर का इंपैक्ट देखा गया, चुनाव में साफ हो गया है कि पत्रकार वोटर नए युवाओं और जोश खरोश भरे लोगों को मौका देने के पक्ष में दिखे। परंपरागत रूप से चुनाव लडऩे वाले पैनल इस चुनाव बिखर से गए, पुराने पदाधिकारी को भी किनारे कर दिये गए, ऐसा लगा मानो प्रेस क्लब बोल रहा है चलो कुछ नया करते हैं।

पिछले कार्यकाल में अध्यक्ष रहे दामु पर लगातार आरोप और कानूनी लड़ाई के पेच चुनावी समीकरण पर खासा असरर डाला। जिसका परिणाम यह हुआ कि आंदोलनकारी छवि सेट कर चलने वाले प्रफुल्ल ठाकुर के पैनल को फायदा मिला। इस मामले में प्रफुल्ल ठाकुर केजरीवाल की तरह उभरे, वही अपने साथियों को दूसरे पैनल में एडजस्ट अपनी तरह के लोगों को बिठाने में कामयाब रहे, चुनावी बिसात भी प्रफुल्ल के साथ समीकरणों में फिट बैठती गई, जीत के लिए प्रफुल्ल ठाकुर ने सोची समझी रणनीति के तहत, प्रेस क्लब के अध्यक्ष रहे दामु आंबेडारे के खिलाफ मुहिम चलाई, जिसका फायदा उनके पूरे पैनल को मिला, जिसकी वजह से अध्यक्ष उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष अपने पैनल से जीतने में वो कामयाब रहे। वही पुराने और परंपरागत रूप से चलने वाले पैनल ब्राह्मणपारा पैनल महासचिव और एक संयुक्त सचिव जीतने में कामयाब रहा, हालांकि इस चुनाव में परिणाम से ये लगता है कि ब्राह्मण ारा पैनल दूसरे पैनलों के द्वारा इस्तेमाल हो गया, उनका पैनल का अध्यक्ष नहीं जीतने का रिकॉर्ड चुनाव से लगातार जारी है जो इस बार भी बरकरार रहा, वोटरों की नाराजगी की वजह से अध्यक्ष जीत ही नहीं पा रहा है,महासचिव पद पर भी ब्राह्मणपारा पैनल को मिली जीत प्रफुल्ल के पैनल के रहमों करम से मिली। पैनल की प्रतिबद्धता से अलग हटकर अध्यक्ष उम्मीदवार रहे प्रफुल्ल और महासचिव उम्मीदवार रहे वैभव ने एक दूसरे के अंदर-अंदर मदद की जिसे संगवारी पैनल के महासचिव की जीत सुनिश्चित हो सकी,महासचिव पद पर जहां ब्राह्मणपारा पैनल के फिक्स वोट नहीं टूटे वहीं विरोधी खेमे के तीन बड़े उम्मीदवारों में वोटों का बंटवारा हो गया जिसका सीधा लाभ वैभव पांडे को मिला, जबकि इसकी तुलना में संगवारी पैनल के अध्यक्ष उम्मीदवार को कम वोट मिले, वोट हासिल करने के लिए मिली जुली कुश्ती के समीकरण का असर यह हुआ कि दिग्गज उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा।

पूरे चुनाव परिणाम का विश्लेषण करो तो जीतने वाले उम्मीदवारों का चुनावी पैटर्न आम आदमी पार्टी की तरह, प्रतीत होता है हाईटेक आंदोलनकारी और बदलाव के सपने से भरा हुआ था प्रचार जीत का कारण साबित हुआ, समीकरणों के हिसाब से प्रेस क्लब के चुनाव में बड़े-बड़े पैनल के समर्थक वर्ग की कलाई खुल गई,वही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चतुराई से चुनाव परिणाम के जरिए एंट्री हो गई है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उम्मीदवारो ने पैनलों को अपने सहारे के लिए इस्तेमाल किया,जिन पैनलों की प्रिंट मीडिया में धाक थी, उनके साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सेल जुड़े उम्मीदवारों ने अपना कांबिनेशन बनाया जिसे प्रिंट मीडिया से संबंधित वोट जहां बट गए वहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक तरफा सोच समझकर वोट किया,जिससे 6 में से पांच पदाधिकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जीत कर आए हैं। नवनिर्वाचित पदाधिकारियों में से पांच पदाधिकारी तो पूरी तरीके से नए हैं नए जोश खरोश के साथ उनमें उसे अति उत्साह भी देखा जा रहा है और इसीलिए परिणाम के पहले दिन ही शपथ ग्रहण के पहले ही उत्साही लाल पदाधिकारी ने उठा पटक शुरू कर दी, मातृशोक के कारण अनुपस्थित रहने वाले कार्यालय सचिव पर कार्यवाही की मांग उठने लगी। उनके कार्यालय अचानक सील कर दिया गया, कबाड़ खाने में रखे कुछ पुराने चीजों को बाहर निकाला गया, परिवर्तन दिखाने के लिए सब कुछ उल्टा-पुल्टा किया जा रहा है प्रेस क्लब पत्रकारों के रिफ्रेशमेंट क्लब के रूप में कार्य करता रहा है लेकिन नए पदाधिकारी से यूनियन की तरह संचालित करने की बात कर रहे हैं।

पत्रकार सुरक्षा, संविधान संशोधन जैसी बातों से इसकी शुरुआत हुई है, जो कि पदाधिकारी के तेवर और प्रवृत्ति को देखते हुए अखबारों में कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन तक जा सकती है इस बात की संभावना है। बहरहाल प्रेस क्लब का वोटर बदलाव चाहता था,वह पुराने पैनलों से भी उब चुका था, ऐसे में दिल्ली के पैटर्न वोटरों ने वोट किया। नए लोगों को भरपूर मौका मिला। आम आदमी पार्टी की तरह जिनमें जोश जज्बा और नए प्रयोग करने की ललक थीं, उनको ज्यादा प्राथमिकता मिली,अब केजरीवाल की कार्य शैली में प्रेस क्लब का कचरा साफ करने के लिए झाड़ू चलेगी ऐसी चर्चा है इसे दिल्ली पैटर्न या केजरीवाल कार्यशैली भी कहते हैं पहले दिन से इसकी झलक भी दिखने लगी है। इसलिए हम उम्मीद करते है कि नवनिर्वाचित पदाधिकारी अपनी मेनीफेस्टों पर कार्य करे अपनी कार्यशैली से 1 साल के मिले समय का सदुपयोग करें,नहीं तो यह कार्यकाल भी अपनी खुन्नस और बदले की राजनीति और लड़ाई झगड़े में ना निकल जाए।

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