
छत्तीसगढ़। हाईकोर्ट ने 15 साल की लड़की के दिए बयान
की प्रमाणिकता के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को ADJ
कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं। लड़की ने POCSO
( यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम) में धारा
164 के तहत ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज
कराया था। कोर्ट ने ‘बचाव गवाह’ के तौर पर न्यायिक
मजिस्ट्रेट को हाजिर होने के लिए कहा है।
दरअसल, जांजगीर-चांपा के पामगढ़ निवासी राकेश रात्रे के खिलाफ 15 साल की लड़की ने दुष्कर्म का आरोप लगाया है। आरोप है कि राकेश उसे शादी का झांसा देकर अपने साथ ले गया और फिर कई बार शारीरिक संबंध बनाए। जांच के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया। जिसके आधार पर ADJ (प्रथम) के कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
आरोपी के वकील का ADJ कोर्ट ने खारिज किया आवेदन
हाईकोर्ट में आरोपी के वकील सुमित सिंह ने तर्क दिया कि पुलिस ने 164 के बयान दर्ज कराए थे तब ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने लड़की ने आरोपी से उसके प्रेम संबंध होने, मर्जी से शारीरिक संबंध बनाने की बात बताई थी।वकील ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को ADJ कोर्ट में बुलाने का CRPC की धारा -233 के तहत आवेदन दिया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया।
वकील ने कहा- लड़की ने 164 में दर्ज बयान में कोई
आरोप नहीं लगाए
ADJ कोर्ट से आवेदन खारिज होने पर आरोपी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण अपील की। इसमें वकील सुमित सिंह ने तर्क दिया कि लड़की के बयानों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। यह भी कहा कि, धारा 164 के तहत दिए बयान में लड़की ने राकेश के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाए थे। ऐसे में बयान की सत्यता के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को गवाह के रूप में बुलाया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा- न्यायिक मजिस्ट्रेट का बयान दर्ज कराना
उचित
आरोपी के वकील की याचिका पर शासन की ओर से
आवेदन को खारिज करने की प्रार्थना की गई। हालांकि
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि,
आवेदन को बचाव का पूरा अवसर मिलना चाहिए। इसे
ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट के सामने संबंधित न्यायिक
मजिस्ट्रेट का बयान दर्ज करना उचित होगा।
क्या कहती है CRPC की धारा – 233 ?
सीआरपीसी की धारा 233 के तहत आरोपी अपने बचाव
में किसी भी गवाह को पेश होने के लिए आवेदन कर
सकता है। हालांकि उसे बुलाने या न बुलाने का अधिकार
कोर्ट के पास सुरक्षित है। अगर कोर्ट को उचित लगता है तो वह पूछताछ के लिए बुला सकता है। हालांकि बचाव पक्ष के गवाह के रूप में उसे कोर्ट में पेश होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।