छत्तीसगढ़

पूरे छत्तीसगढ़ व देश-भर में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया ईद-उल-अजहा का त्योहार

छत्तीसगढ़ व पूरे देश-भर में आज बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया ईद-उल-अजहा का त्योहार सभी ईदगाहों व अन्य मुस्लिम धर्म स्थलों में ईद की नमाजें अदा की जाती है और इसी के साथ एक दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद भी दी जाती है इसके बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू किया जाता है बकरीद पर कुर्बानी का काफी एवं खास महत्व है. जिसमे आर्थिक सामर्थ्य से पूर्ण व्यक्तियों के लिए कुर्बानी करना जरूरी माना गया है कुर्बानी के बाद जो हिस्सा निकलता है, उसे तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है. इनमें एक हिस्सा खुद के लिए, एक रिश्तेदारों के लिए और एक गरीबों के लिए होता है।

आपको बतातें चले कैसे शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा?

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, ईद उल अज़हा” जिसे“ईद उल जुहा” भी कहते है  मुसलमानों का एक प्रमुख त्योहार है जो पूरी दुनिया में इस्लामिक “जिल हज्ज” महीने की 10 तारीख़ को मनाया जाता है ,इस्लाम के पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके बेटे का नाम इस्माइल अलैहिस्सलाम था. इस्माइल अलैहिस्सलाम से उनके पिता हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को बहुत ज्यादा प्यार था इसी दौरान हजरत इब्राहिम को एक रात ख्वाब आया कि उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज को परमात्मा की राह (रास्ते) पर कुर्बान करना होगा.जो एक भारी और सख्त इम्तिहान था इस्लामिक ग्रन्थ के अनुसार यहां पर इतिहासकार बताते हैं कि हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए यह आदेश अल्लाह के तरफ से था, जिसके बाद हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को कुर्बान करने का अंतिम फैसला लिया गया।इसी परंपरा को दुनिया भर के सभी मुसलमान आज भी जानवर की कुर्बानी देकर पूरा करते है।

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, जब अल्लाह के हुक्म पर बेटे इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी देने से पहले हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने कड़ा दिल करते हुए अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और उसकी गर्दन पर छुरी रख दी. हालांकि, उन्होंने जैसे ही छुरी चलाई तो वहां अचानक उनके बेटे इस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह एक दुंबा (बकरा) आ गया. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत थे।और इब्राहिम अलैहिस्सलाम परमात्मा के द्वारा लिए गए इस सख्त इम्तिहान को बे झिझक पार कर लिया गया तब से लेकर आज तक कुर्बानी का यह सिलसिला जारी है जिसे मुस्लिम धर्म के मान्यताओं के अनुसार ईदुल अजहा भी कहा जाता है।

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