छत्तीसगढ़

DMF के सोशल ऑडिट की उठ रही है मांग,न्यास के कामकाज की जानकारी तक नहीं देते अधिकारी, सूचना आयोग ने लिया संज्ञान

रायपुर। जिला खनिज न्यास (DMF) के पैसे से प्रदेश भर में हो रहे कामकाज पर अक्सर लोग उंगलियां उठाते है, यही वजह है कि अब मनरेगा की तरह DMF के कामकाज की भी सोशल ऑडिट करने की मांग उठने लगी है, मगर हकीकत तो ये है कि जिलों में DMF से संबंधित कार्यों की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत भी नहीं दी जा रही है। जिसके चलते यह पता भी नहीं चल पाता कि न्यास के फंड से जिले में क्या-क्या काम हो रहे हैं।

गौण खनिज से प्राप्त होने वाली रकम के लिए जिलों में DMFT याने जिला खनिज न्यास ट्रस्ट बनाया गया है। प्रदेश में कोरबा सहित कई ऐसे जिले हैं जहां हर वर्ष खनिज न्यास में करोड़ों रूपये जमा होते हैं। इस रकम को संबंधित खदानों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित इलाकों और वहां के निवासियों के हित में खर्च किया जाना है। इसके लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी होती है जो DMF के तहत प्रस्तावित कामकाज को अंतिम रूप देती है।

उम्मीदों पर फिरा पानी

देश में DMF का कानून बनाने के लिए संघर्ष करने वालों को उम्मीद थी कि DMF के पैसे से खदान प्रभावित इलाकों का कायाकल्प हो जायेगा मगर प्रशासनिक अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों ने इस फंड की जिस तरह बंदरबांट की उससे लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया। प्रदेश भर में फिजूल के निर्माण कार्यों में करोड़ों रूपये फूंक दिए गए और खदान प्रभावित इलाकों की दशा जस की तस है।

DMF को लेकर हुई कार्यशाला

कोरबा के पंचवटी विश्राम गृह में जिला खनिज न्यास मद के सोशल आडिट पर कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमे सोशल आडिट की आवश्यकता और महत्त्व पर चर्चा की गई। सामाजिक संस्था एनवीरोनिक्स, सार्थक और मीरा ग्रुप द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में कोरबा जिले के साथ रायगढ़, कोरिया के खादानो से प्रत्यक्ष प्रभावित लोगों ने शामिल होकर अपनी बात रखी। इस दौरान लोगों ने DMF को लेकर अपने अनुभव सुनाते हुए इसके लिए बनाये गए कानून का तो समर्थन किया मगर उस पर किये जा रहे अमल के तरीके को लेकर आपत्ति जताई।

प्रस्तावित कार्यों की सूची भी नहीं मिलती

इस बैठक में कुछ ऐसे सरपंच भी शामिल हुए जो DMF के लिए गठित शाषी परिषद् के सदस्य हैं। इन्होंने बताया कि परिषद् की बैठक पूरी तरह औपचारिक होती है। इसमें कार्यों का प्रस्ताव पूर्व से ही तैयार होता है, वहीं इस प्रस्ताव की सूची भी सभी सदस्यों को नहीं दी जाती। एक सरपंच ने कहा वे बैठक में कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं होते, क्योकि अधिकारी नाराज हुए तो उनकी कुर्सी जाने का भी खतरा होता है। उन्हें संतुष्ट करने के लिए उनके पंचायत में कुछ लाख रूपये के कार्य स्वीकृत कर दिए जाते हैं।

औचित्यहीन कार्यों पर होता है खर्च

बैठक में शामिल अधिकांश लोगों ने बताया कि DMF के करोड़ों रूपये बिना काम के बड़े-बड़े निर्माण कार्यों में लगा दिया जाता है, आज ऐसे भवन किसी भी काम में नहीं आ रहे हैं। कोरबा में ही मल्टीलेबल पार्किंग सहित ऐसे कई भवन खड़े कर दिए गए हैं, जो किसी काम के नहीं हैं।

गांवों में दो-दो पंचायत भवन..!

DMF के पैसों की बर्बादी किस कदर की जा रही है उसका नमूना पेश करते हुए एक कार्यकर्त्ता ने बताया कि ग्राम पंचायतों में राजीव सेवा केंद्र के नाम पर भवन बनाये गए हैं जहां पंचायतों का काम ऑनलाइन करने की योजना है। इन भवनों के बावजूद DMF के फंड से कई गांवों में पंचायत भवन बना दिए गए हैं। अब दो-दो भवनों का क्या औचित्य?

सोशल ऑडिट का प्रावधान मगर…

DMF के कानून के संशोधन में इसके फंड से होने वाले कामकाज के सामाजिक अंकेक्षण (SOCIAL AUDIT) का प्रावधान भी किया गया है, जिसमे मनरेगा की तरह संबंधित इलाकों में सभा आयोजित करके DMF से हुए कार्यों की समीक्षा की जाएगी, मगर ऐसा कहीं भी होता नजर नहीं आ रहा है। बैठक में चर्चा के दौरान लोगों ने बताया कि DMF के कार्यों की जानकारी अगर आप RTI से मांगते हैं तो संबंधित शाखा में बैठे अधिकारी आनाकानी करते हैं और बहानेबाजी करके जानकारी देने से इंकार कर देते हैं। प्रशासन का प्रयास यह होता है कि DMF के काममाज की जानकारी बाहर ही नहीं आये। प्रदेश के अधिकांश जिलों का यही हाल है। लोगों का कहना है कि जब अधिकारी DMF की जानकारी देने में हीला-हवाला कर रहे हैं तो वे इसका सोशल ऑडिट कहां से करने वाले हैं। इस बैठक में यह भी तय किया गया कि एक कमेटी बनाकर डीएमफी के उपयोग की विस्तार से जांच की जाएगी और सरकार के साथ ही अकाउंटेंट जनरल से भी इसकी शिकायत की जाएगी।

सूचना आयोग में करनी पड़ी अपील

रायगढ़ के सामाजिक कार्यकर्त्ता राजेश त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने जिले के DMF शाखा से सन 2015 से लेकर अब तक DMF से हुए कामकाज की जानकारी मांगी और यह भी पूछा कि किन कार्यों की सोशल ऑडिट कराइ गई है, तब उन्हें केवल ऑडिट रिपोर्ट थमा दिया गया। जब वे अपीलीय अधिकारी के पास गए तो वहां भी उन्हें गोलमोल जवाब मिला। आखिरकार राजेश त्रिपाठी राज्य सूचना आयोग में गए। यहां राज्य सूचना आयुक्त धनवेन्द्र जायसवाल ने दोनों पक्षों को सुना और आदेश दिया कि प्रार्थी ने जो भी जानकारी मांगी है, वो उसे प्रदान की जाये। चूंकि DMF के कार्यों का सोशल ऑडिट नहीं कराया गया है, इसलिए उससे संबंधित कोई भी जानकारी प्रार्थी को नहीं दी जा सकती। बता दें कि DMF के RTI से संबंधित कई प्रकरण जिलों में अटके पड़े हैं और लोगों को जानकारी देने के लिए घुमाया जा रहा है।

गौरतलब है कि पूर्व में भाजपा के शासनकाल में DMF के फंड से अनाप-शनाप हुए खर्चों को देखते हुए DMF को “डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फंड” कहा जाने लगा था। कालांतर में कांग्रेस की सरकार आयी, DMF के कानून में कुछ संशोधन भी हुए, मगर इस फंड से जिलों में हो रहे कामकाज से लोग आज भी संतुष्ट नहीं है। लोगों का कहना है कि DMF के काम पूरी तरह पारदर्शिता से होने चाहिए, तभी इसके काम में सुधार होगा और जरुरत की चीजों पर इस फंड का उपयोग होगा। इसके लिए सबसे पहले DMF के सोशल ऑडिट की शुरुआत कर ही देनी चाहिए।

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